पुस्तक समीक्षा : डॉ. नीरज कनौजिया के कविता संग्रह ;दर्द की लकीरें’ की कविताओं में पीड़ा के संत्रास के साथ ही जीवन संघर्ष और उम्मीदें भी हैं

 

डॉ. नीरज कनौजिया के कविता संग्रह ;दर्द की लकीरें’ की कविताओं में पीड़ा के संत्रास के साथ ही जीवन संघर्ष और उम्मीदें भी हैं

समीक्षक -ओम प्रकाश तिवारी

कौन यहां किसका
अपना है
जग केवल कोरा
सपना है
छलना तो केवल
छलना है
साँसों के हर तार
बंधे हैं
जीवन को बरबस
जलना है
दर्द की लकीरों के
साथ चलना है।

उपर्युक्त पंक्तियाँ डॉ. नीरज कनौजिया के काव्य संग्रह ‘दर्द की लकीरें’ की प्रतिनिधि कविता है। इन पंक्तियों में कवयित्री के मनोजगत की अनुभूतियों की प्रतिध्वनि है। कवियत्री ने जीवन में जो भोगा है, उसे बिना लाग – लपेट के शब्दों में पिरोया है। डॉ. नीरज कनौजिया ने समीक्ष्य काव्य संग्रह के आमुख में स्वयं स्वीकार किया है, ‘दर्द की लकीरें’ मेरे अंतस की मुक्तामाला है, जिसका आस्तित्व ही मेरे जीवन की गति है। संग्रह की प्रतिनिधि कविता विपरीत परिस्थितियों में भी जीवन में संघर्ष के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।

‘अभिव्यक्ति की तलाश में’ इस संकलन की पहली कविता है। यह कविता जीवन के सत्य के मर्म को उद्घाटित करती है। इस संकलन में शामिल नीरज की अन्य कविताओं में भी पीड़ा के संत्रास के साथ ही जीवन संघर्ष और उम्मीदें भी हैं। एकाकीपन की अनुभूतियाँ भी हैं। मानव मन के सहज भाव को उकेरती प्रवणता भी है। संकलन की एक कविता है – ‘भटकता पक्षी’। इस कविता का शीर्षक ही बहुत कुछ कह देता है। इस कविता में कवियत्री ने शायद एकाकी अवचेतन को समझाने का प्रयास किया है। इस कविता के अंत में स्वार्थी संसार से विरत शून्य में लीन हो जाने का करुणामय निवेदन भी है।

संकलन की अधिकांश कविताओं में ‘दर्द’ का एहसास है। इन्हे पढ़ने से लगता है कि दर्द ही जीवन का स्थाई भाव है। गौतम बुद्ध के चार आर्य सत्य में दुःख प्रथम और प्रमुख है। जिस तरह बुद्ध ने दुःख के निवारण का मार्ग बताया है, उसी तरह कवियत्री नीरज कनौजिया ने भी अपनी कविता ‘दर्द की चादर’ में उम्मीदों का दिया जलाया है – ‘रातें धरा पर चांदी, बरसाएंगी। चांदी की किरणें, तन्हाईयाँ जगायेंगी। टूटे मन पर तेरी याद, के साये होंगे। और एक रात यूँ ही, खामोश गुजर जायेगी। दर्द की चादर ओढ़कर।

समीक्ष्य संकलन की कविताओं को पढ़कर महादेवी वर्मा की काव्य वेदना की अनुभूति होती है। उनकी कविता ‘मैं नीर भरी दुःख की बदली’ की वेदना और भाव नीरज कनौजिया की कविताओं में सहज है – ‘कांटों का पथ मेरा है, चारो ओर अन्धेरा है’। कवियत्री स्त्री अस्मिता का सवाल भी उठाती है, – ‘हम तो बाबुल तोरे आंगन की चिड़िया, फिर काहे समझे है बोझ’ यह कविता स्त्री के मन के संत्रास को बया करती है। यही नहीं नीरज की कविताओं में भावनात्मकता, प्रेम, प्रकृति और स्त्री मन की छटपटाहट भी है। कुछ कविताओं में स्त्री के एकाकीपन को स्वर देने की कोशिश की गई है – ‘जिंदगी का सन्नाटा, दिनों दिन गहरा होता जा रहा है’। ‘रात की शाख पर उग आया है सन्नाटा’।

नीरज की कविताओं में स्त्री मन की छटपटाहट है। उन्मुक्त आसमान में उड़ने की चाहत है तो स्त्री के प्रेम का सामर्थ्य भी है – ‘दूर से बुला लूंगी तुम्हे, अपने गीतों के सुरों में’। इसी तरह इस संकलन की कई कविताओं में स्मृतियों के दुखद अध्याय भी हैं – तन्हा खामोश रातों में अक्सर, नींद आने से पहले, आहिस्ता – आहिस्ता पलकों में साकार होते, वह धुंधले से एहसासों के साये। यह कहना समीचीन होगा कि नीरज कनौजिया की कविताएं आत्मगत हैं। इन कविताओं के मर्म को वही समझ सकता है, जिसकी अपनी अनुभूतियाँ हों।

‘फैसला’ संकलन की अंतिम कविता है। यह कविता जीवन संबंधों और खासतौर से स्त्री जीवन की पीड़ा के उदात्त स्वरूप को उजागर करती है। संकलन की कविताओं को पढ़ने से सहज अनुभूति होती है कि कवियत्री ने अपनी संवेदात्मक अनुभूतियों को शब्दों में गूंथ कर एक सुंदर माला तैयार की है। संकलन के आमुख में कवियत्री स्वयं लिखती है – ‘जिंदगी में जो कुछ भी करीब से छूकर गुजरा है, उन सब अनुभूतियों को ज्यों की त्यों बिना किसी कलात्मकता के मौलिक रूप में दर्द के धागे में पिरोकर इस किताब में दर्ज़ कर रही हूँ’।

समीक्ष्य संकलन की कवितायें अनुभूतियों की, प्रेम की, वियोग की, बिछुड़न की एवं दर्द के साथ ही उम्मीदों की किरण भी हैं। इन कविताओं में उर की आह है तो प्रेम की सुगंध भी है। यह संकलन काव्य रसिकों को रुचिकर लगेगा, ऐसा बिश्वास के साथ कह रहा हूँ।

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