सपा रालोद में गठबंधन तो हुआ पर सीट को लेकर दोनों दलों में खींचतान बरकरार, जानिए कहा फंसा पेंच

मुजफ्फरनगर। लोकसभा चुनाव में सपा यूपी में बड़ा भाई ही बनकर रहना चाहता है, इसलिए वह सभी सहयोगियों को अपने चाल में फंसा रही है। इस चाल का पहला शिकार हुए रालोद मुखिया जयंत चौधरी। वैसे तो सपा ने उन्हें सात सीट दिया है, लेकिन वह तीन सीटों पर वह रालोद के सिंबल पर अपने प्रत्याशी उतारना चाहते है, इस तरह वा​स्तविकता में रालोद को चार सीट ही मिलती दिख रही है।

इसके अलाव मुजफ्फरनगर सीट पर दोनों दल अपने प्रत्याशी उतारना चाहते है, ऐसे में इस सीट को लेकर मामला उलझता नजर आ रहा है। इस सीट को लेकर अभी वार्ता चल रही है। वैसे तो यह रालोद के कोटे में रहेगी,लेकिन सपा उस पर अपना प्रत्याशी उतारन चाहती है। कैराना, बागपत और मथुरा रालोद के हिस्से में जाने की संभावना है। इसी प्रकार कैराना में सिंबल रालोद और प्रत्याशी सपा का रहेगा। शुक्रवार को सपा-रालोद गठबंधन की तस्वीर साफ हो गई।

मुजफ्फरनगर सीट पर मामला उलझा

वास्तविकता में रालोद के खाते में सिर्फ चार या पांच सीट ही रह जाएगी। मथुरा, बागपत और कैराना पर रालोद का सिंबल रहेगा। लेकिन मुजफ्फरनगर पर मामला उलझा हुआ है। नल के सिंबल पर सपा के उम्मीदवार को रालोद नेतृत्व ने फिलहाल इन्कार कर दिया है। यह भी संभव है कि मुजफ्फरनगर सीट पर सपा अपने ही सिंबल पर प्रत्याशी उतारे और बिजनौर सीट रालोद के हिस्से में चली जाए। इसी वजह से अंतिम फैसला नहीं हो सका। बागपत और मथुरा में रालोद के प्रत्याशी ही मैदान में उतरेंगे।

आसपा के हिस्से में नगीना

दोनों दलों के बीच हुई बातचीत के बाद यह भी चर्चा है कि आसपा अध्यक्ष चंद्रशेखर सुरक्षित सीट नगीना से चुनाव लड़ेंगे। यही वजह है कि सपा और रालोद ने अपनी बातचीत में नगीना सीट को शामिल नहीं किया है।रालोद और सपा ने विधानसभा चुनाव में भी सिंबल पर सहमति बनाने के बाद प्रत्याशी बदल लिए थे।पूर्व सांसद और सपा में पश्चिम के रणनीतिकारों में शामिल हरेंद्र मलिक भी शुक्रवार सुबह अपने समर्थकों के साथ लखनऊ पहुंचे। गठबंधन पर मुहर से पहले पश्चिम के समीकरण भी जानने की कोशिश दोनों नेताओं ने की। मलिक सपा से टिकट के दावेदार हैं। लेकिन रालोद में अभी उनके नाम पर सहमति नहीं बन सकी है।

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