नवेद शिकोह, लखनऊ। ज़िन्दगी के हर ख़ुशनुमा रंग को जीने में माहिर रंग-बिरंगे कुर्तों वाले शहर के चर्चित पत्रकार अब्दुल वहीद की चमकती आंखों वाला मुस्कुराता फेस फेसबुक पर हर दिन एक नए अंदाज़ मे नज़र आता है। आज मैंने हकीकत में अब्दुल के चेहरे के दो बदलते रूप देखे। उनके चेहरे पर इंतेहा से ज्यादा फिक्र थी और आंखों में आंसू थे। तीन घंटे के बाद चेहरे की रंगत बदल गई, चेहरे पर खुशी थी और आंखों में आंसू बर्करार थे। लेकिन इन वाले आंसुओं का रूप बदल गया था, अब ये आंसू खुशी के थे।
आयुष्मान कार्ड से मिला जीवनदान
लखनऊ के केजीएमयू लारी कॉर्डियोलाजी के ऑपरेशन थिएटर से वहीद की क़रीब नब्बे बरस की अम्मा स्ट्रेचर से बाहर लाई जा रहीं थीं। डाक्टर साहब अब्दुल से कह रहे थे कि अम्मा ठीक हैं। तीन घंटे पहले वो मृत्यु शय्या पर थी। उम्र ज्यादा थी, उनकी हालत भी बहुत सीरियस थी और ढाई-तीन घंटे में उन्हें पेसमेकर लगाने में सफलता हासिल करना बेहद बड़ी चुनौती थी। हर मोर्चे पर साथ मिला और खर्चीला इलाज पूरी फ्री में हर सुविधा के साथ हुआ,किस्मत और दुआओं ने भी साथ दिया और नाउम्मीदी में उम्मीद की रौशनी ने थमती सांसों को काबू कर लिया। अब्दुल वहीद की जन्नत (मां) ओटी से वार्ड में शिफ्ट कर दी गईं।
सरकार का शुक्रिया अदा किया
अब अब्दुल वहीद पूरी दास्तां बताने से पहले अल्लाह का शुक्र अदा करते हैं। फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, प्रमुख सचिव सूचना संजय प्रसाद और ख़ासकर डायरेक्टर इंफॉर्मेशन शिशिर जी का दिल की गहराइयों से धन्यवाद व्यक्त करते है। बताते हैं कि ज़िन्दगी बचने की सफलता का पहला श्रेय उप्र सूचना एवं जनसंपर्क विभाग को जाता है। जहां पत्रकारों और उनके परिजनों के लिए फ्री इलाज मोहया कराने वाले आयुष्मान कार्ड बनवाने का विशेष शिविर लगा। इत्तेफाक कि यहां जो पहला आयुष्मान कार्ड बना वो उनकी की अम्मा का था। एक खुशनसीब मां के भाग्यशाली सुपुत्र बताते हैं कि कार्ड बनने के कुछ ही दिन बाद यानी दो दिन पहले उनकी बुजुर्ग मां की तबियत बिगड़ी। सांसे उखड़ रही थीं।
केजीएमयू में मिला इलाज
केजीएमयू की वीसी सोनिया नित्यानंद और पी आर ओ विपुल जी को फोन कर पेशेंट की कंडीशन बताई गई तो उन्होंने कहा कि तुरंत लारी ले आईए। एक फोन पर पांच-सात मिनट में कैसरबाग आफिसर्स कॉलोनी में सरकारी एंबुलेंस पंहुच गई। दस मिनट में एंबुलेंस ने लारी पंहुचा दिया। वहां तैनात डाक्टर प्रवेश विश्वकर्मा ने कहा कि फौरन पेसमेकर का इंतजाम कीजिए। जिसका खर्च करीब दो लाख था। इतने जल्दी दो लाख का इंतेजाम थोड़ा मुश्किल था। बताया गया कि पेशेंट का आयुष्मान कार्ड बना हुआ है। आयुष्मान कार्ड और आधार कार्ड में त्रुटि वंश कुछ मिसमैच था। वक्त कम था और आयुष्मान कार्ड को सिस्टम एक्सेप्ट नहीं कर रहा था।
एच आर धवन और लारी की डॉली ने रिक्वेस्ट डाली और कुछ देर में आयुष्मान ने फ्री में मंहगे पेसमेकर का इंतेजाम कर दिया। ज़िन्दगी और मौत के बीच जद्दोजहद के बीच पेशेंट को आपरेशन थियेटर ले जाया गया। प्रोफेसर प्रवेश विश्वकर्मा ने ढाई-तीन घंटे के संघर्ष के साथ इतनी बुजुर्ग महिला के सफलतापूर्वक पेसमेकर लगाकर उन्हें मौत के मुंह से निकाल लिया।
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