9 मार्च 2025, लखनऊ । महिलाओं को समाज में जो स्पेस मिला है। उसके पीछे उनका संघर्ष है। धर्म, राज्य, जाति आदि की सत्ताएं अवरोधक रही हैं। वह आज भी इसी भूमिका में हैं। संविधान जो बराबरी का अधिकार देता है जमीन पर पूरी तरह उतर नहीं पाया है। वहीं मनुस्मृति के अनुसार जीवन को ढ़ालने की कोशिश हो रही है । उनकी स्वतंत्रता को सीमित करने के उपक्रम चलाए जा रहे हैं। इन्हीं के बीच महिलाओं को आगे बढ़ाना है, संघर्ष करना है।
यह विचार आज जन संस्कृति मंच (जसम) की ओर से लखनऊ पुस्तक मेला में आयोजित ‘धर्म, सत्ता और महिला स्वतंत्रता’ विषय पर आयोजित वार्ता-कार्यक्रम के दौरान उभर करआए। वार्ताकार थीं उर्दू शायरा तस्वीर नक़वी, कवि विमल किशोर, एपवा की कमला गौतम और भगतसिंह छात्र मोर्चा की आकांक्षा आजाद। इनका कहना था कि महिला दिवस उत्सव से अधिक संघर्ष के संकल्प का दिन है।
कार्यक्रम का संचालन और बीज वक्तव्य जसम के शांतम निधि ने दिया। उन्होंने महिला आंदोलन के इतिहास और विषय के परिप्रेक्ष्य को रखते हुए कहा कि महिलाओं को छोटी-छोटी आजादी भी संघर्ष से मिली है। वोट का अधिकार नहीं था। घर के अंदर की दुनिया को उनकी दुनिया बना दी गई थी। आज वे बाहर आ रही हैं, बराबरी में खड़ी हो रही हैं तो फिर से उन्हें घर के दायरे में रखने की बात हो रही है। सत्ता द्वारा संचालित धार्मिक अभियान के पीछे यही अभिष्ट है। धर्म और सत्ता के चरित्र को समझना जरूरी है। और इस पर विचार होना चाहिए कि वे कौन सी शक्तियां हैं जो महिलाओं की स्वतंत्रता में बाधक हैं।
तस्वीर नक़वी ने कहा कि धार्मिक कट्टरता बढ़ी है जिससे आज हमें जूझना पड़ता है। हम दुनिया घूम आते हैं लेकिन अपने वतन यानी कस्बे में हम जैसी औरतों को सार्वजनिक मंचों पर देखना हमारे समाज को गंवारा नहीं है। रमज़ान के महीने में मैं यहां हूं। यह उन्हें अच्छा नहीं लगेगा। स्त्री जीवन में तमाम बेड़ियां हैं जिनसे जूझना पड़ रहा है।
विमल किशोर का कहना था कि सनातन के नाम पर पिछड़े मूल्यों और रूढ़ियों को पुनर्जीवित किया जा रहा है। प्रगति के दावों के बाद भी महिला उत्पीड़न व हिंसा जारी है। घर के अंदर भी हिंसा हो रही है। पितृसत्तात्मक व्यवस्था ने स्त्रियों को भी औजार बना दिया है। कहा भी जाता है कि स्त्री ही स्त्री की शत्रु हैं।
आकांक्षा आजाद ने बीएचयू के छात्राओं के सेक्सुअल हेरेसमेंट के विरोध में हुए आंदोलन की चर्चा करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय के कैम्पस में छात्राएं असुरक्षित हैं। उन पर तमाम तरह की बंदिशें हैं। हालत यह है कि बलात्कारियों को राज्य के द्वारा संरक्षण ही नहीं मिल रहा है बल्कि न्यायपालिका से भी उन्हें जमानत, पैरोल आदि मिल रहा है। इन खराब स्थितियों के बीच महिला आंदोलन को राह बनानी है।
कमला गौतम ने अपने अनुभव को साझा किया। वे लखनऊ के ग्रामीण क्षेत्र में महिलाओं के बीच काम करती हैं। उन्होंने बताया कि गांव में जातिगत भेद-भाव के साथ स्त्री पुरुष का भी भेद है। सरकार महिलाओं के सशक्तिकरण की चाहे जितनी भी लफ्फाजी करे पूरा देश देख रहा है कि मोदी राज में महिलाओं पर जबरदस्त दमन और यौन हिंसा की घटनाएं हो रही हैं। मोदी सरकार के आने के बाद पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं की आजादी और अधिकारों पर हमले तेज हुए हैं। उनके अधिकार छीने जा रहे हैं। इसलिए आज महिलाओं को और अधिक एकजुट होकर अपने आन्दोलन को तेज करना होगा।
कार्यक्रम का दूसरा सत्र कविता पाठ का था। विमल किशोर ने ‘महिला दिवस’ और ‘ऐ, सुन्दर लड़कियां ‘ कविताएं सुनाईं। वे कहती हैं ‘ यह दिवस/हम मनाते तो जरूर हैं/पर यह लड़ाई आज भी जारी है /श्रम की लूट जारी है/गैरबराबरी जारी है/हिंसा-बलात्कार जारी है/शोषण-जुल्म जारी है/तो इस शोषण तंत्र के खिलाफ/लड़ाई भी जारी है’।
इस मौके पर तस्वीर नक़वी ने भी अपनी कविताओं से आज की शाम को सार्थक किया। उन्होंने दो नज़्म सुनाए। वे कहती हैं ‘मज़हब के ठेकेदारों से/इज़्ज़त के दावेदारों से/जिस्म के ख़रीदारों से/ज़हनों के पहरेदारों से/लड़ना है तुझे ,लड़ना है तुझे/कोख में बच्ची क्यों मर जाए/सेज की दुल्हन क्यों जल जाए/घर में जब झगड़ा हो जाए/क्यों वो “डर” के थप्पड़ खाए/लड़ना है तुझे ,लड़ना है तुझे’।
इस मौके पर चंद्रेश्वर, असगर मेहदी, शैलेश पंडित, बंधु कुशावर्ती, वीरेंद्र सारंग, हेमंत कुमार, धर्मेंद्र कुमार, सत्य प्रकाश फरजाना महदी, सिम्मी अब्बास, सिमोन, कल्पना पांडे, इंदु पांडेय , नगीना खान, मंदाकिनी राय, हर्षवर्धन, राकेश कुमार सैनी, रेनू शुक्ला, ज्योति किरण, आशीष कुमार भारती, ए शर्मा, अभिनव, श्रद्धा वाजपेयी , रमेश सिंह सेंगर, जरीन अंसारी, नरेश सिंह चौहान, आशा सिंह, अंकित अग्रवाल, सजल खरे, आशीष कुमार, नागेंद्र त्रिपाठी, राजीव कुमार पांडे, रिंकी अग्रवाल आदि सहित अच्छी संख्या में लोगों ने वक्ताओं को सुना और कविताओं से रुबरू हुए।