जबलपुर। एमपी सरकार ने भले ही अब आकर 17 शहरों में शराबबंदी को लागू किया है, लेकिन एक ऐसा गांव है, जहां पिछले 25 साल से किसी ने शराब नहीं पी। इस वजह से गांव में लड़ाई— झगड़ा समेत कई बुराइयों दूर हो गई है। इस गांव की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां सभी गौड़ आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं और उन्होंने स्वेच्छा से शराब के खिलाफ यह अभियान चलाया है।
इस गांव से प्रेरणा लेकर आसपास के करीब एक दर्जन गांवों ने भी अपने क्षेत्र में शराबबंदी लागू कर दी है। गांव में शराब लाने—बेचने या पीने वालों पर 25,000 का जुर्माना लगाया जाता है और सजा के तौर पर पूरे गांव को भोजन कराना पड़ता है। इस सख्ती की वजह से गांव पूरी तरह नशामुक्त हो चुका है और इसका सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि गांव के युवा अब शिक्षा और रोजगार की ओर अग्रसर हैं।
कैसे हुई शराबबंदी की शुरुआत
यह प्रेरणादायी गांव जबलपुर से 55 किमी दूर है, इस गांव का नाम देवरी नवीन। इस गांव में 25 साल पहले तक लोग खूब शराब पीते थे, जिससे घर-परिवार में रोज लड़ाई झगड़े होते थे, युवा नशे में पड़े रहते थे। परिवारों की आर्थिक स्थिति खराब हो गई। इसके बाद ग्राम पंचायत देवरी नवीन के पंचों और महिलाओं ने ऐतिहासिक निर्णय लिया।पंचों ने ग्राम पंचायत की बैठक बुलाई और सभी ग्रामीणों ने आपसी सहमति से शराबबंदी का संकल्प लिया और महिलाओं की एक समिति बनाई। ग्राम पंचायत ने शराबबंदी को सख्ती से लागू करने के लिए एक विशेष समिति का गठन किया. इस समिति में गांव की महिलाओं की अहम भूमिका रही, जिन्होंने आगे बढ़कर शराब पीने वालों की पहचान करने, उन पर जुर्माना लगाने और गांव को शराब मुक्त बनाने में योगदान दिया।
शराब पीने पर कठोर दंड
- ग्राम पंचायत ने शराबबंदी के लिए कड़े नियम बनाए।
- शराब लाने, बेचने या पीने पर 25,000 का जुर्माना।
- जुर्माने के साथ पूरे गांव को भोजन कराना अनिवार्य।
- शराब पीकर गाली-गलौज करने वालों पर 10,000 का अतिरिक्त जुर्माना।