लघु कथा “लुगाई लेनी है”

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Short Story
डॉक्टर नीरज कनौजिया (वरिष्ठ साहित्यकार एवं वरिष्ठ कवि)

पांच साल का अबोध अमित खेल कर जब घर लौटा तो अपनी “बहन जी” को खोजने लगा. पूरे घर में ढूंढने पर नहीं मिलने पर मां से बार-बार पूछने लगा कि “क्या “बहन जी “अभी तक कॉलेज से नहीं आई ।

मां के ना कहने पर वह दरवाजे में ही बैठकर बहन जी का इंतजार करने लगा।जैसे ही बहन जी घर आई वह उनसे लिपटकर कहने लगा कि” आप मुझे बाजार से लुगाई दिला दो ” पहले तो घर के सभी लोग हंसने लगे, उससे बड़ा भाई उमेश जो कि अमित से चार साल बड़ा था । कहने लगा कि अभी मेरी तो शादी हुई नहीं और इसे अभी से लुगाई लेनी है। अमित बोला, “बहन जी आप मेरी गुल्लक के सारे पैसे ले लो पर मुझे लुगाई दिला दो। उसकी जिद देखकर सब लोग बड़े आश्चर्यचकित रह गये। कभी किसी चीज की जिद ना करने वाला अमित आज ऐसी जिद पकड़ कर बैठ गया है। चारों भाई बहन अपनी बड़ी बहन को “बहन जी” कहते थे।

और उनसे वे सभी बहुत स्नेह करते थे। अमित उनसे पंद्रह साल छोटा था। और अपनी बहन जी से ही लिपटा रहता था।
अपनी सभी छोटी बड़ी चीजें बहन से ही लेता था। भाई की जिद देखकर वह बोली “चलो बाजार से तुम्हें दिला देते हैं”।
वह अपने मन में सोचने लगी कि इसे कोई गुड़िया पसंद आ गई होगी इसलिए वो उसे खिलौनें की दुकान पर ले गयी।
अच्छी से अच्छी गुड़िया दिखाने के बाद उसने एक भी खिलौना नहीं लिया। चार-पांच खिलौनो की दुकानों पर देखने के बाद अमित खुद ही उमंग से बोला “मैं आपको ले चलता हूं जहां लुगाई मिलती है।

बहन जी ने कहां चलो

थोड़ी दूर चलने के बाद वो मुझे एक कुम्हार की दुकान पर ले गया और बहुत उत्साह के साथ उसने एक सुंदर कलात्मक छोटी सी सुराई ले ली और कहने लगा की “लुगाई मिल गयी, सारे रास्ते उछलता-कूदता कहता हुआ कि “लुगाई मिल गयी, “लुगाई मिल गयी, घर वाले भी उसकी सुराई अर्थात लुगाई देखकर हंसने लगे।

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