साम्प्रदायिकता से मुठभेड़ करती कहानी का पाठ एवं चर्चा अभियान के तहत कहानी हिंसा परमो धर्मा का पाठ व चर्चा

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कहानी हिंसा परमो धर्मा का पाठ करती हुई डा. अवन्तिका सिंह

25 नवम्बर 2024, लखनऊ।” साम्प्रदायिकता से मुठभेड़ करती कहानी का पाठ एवं चर्चा अभियान ” के अन्तर्गत 23, नवम्बर, 2024 को सायंकाल डॉ राही मासूम रज़ा साहित्य अकादमी के कार्यालय , सेक्टर – जे , अलीगंज , लखनऊ में मुंशी प्रेमचंद की कहानी ” हिंसा परमो धर्म: ” का वाचन वरिष्ठ कवियत्री – साहित्यकार डॉ अवन्तिका सिंह ने किया।

तत्पश्चात कहानी पर चर्चा करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार राजेंद्र वर्मा जी ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद के कहानी कौशल के संबंध में कुछ कहना सूर्य को दीपक दिखाने जैसा है। प्रेमचंद जैसा चिंतक , कालजयी कथाकार , भविष्य दृष्टा साहित्यकार कहां है ? सौ साल पहले लिखी गई यह कहानी आज भी प्रासंगिक है वरन् आज ज्यादा ही प्रासंगिक है।
वरिष्ठ लेखक श्री अशोक कुमार वर्मा ने कहा प्रेमचंद की कहानी “हिंसा परमो धर्म: ” आज भी अत्यंत प्रासंगिक है। कहानी पढ़ कर अहसास होता है कि इस प्रकार की घटनाएं तो हम प्रतिदिन अपने आस -पास देखते हैं और अनुभव करते हैं। उन्होंने कहा कि कहानी बताती है कि मानवीय मूल्यों को समाज में सर्वोपरि रखने की आवश्यकता है।
वरिष्ठ साहित्यकार श्री अखिलेश श्रीवास्तव “चमन ” कहा कि मुंशी प्रेमचंद की कहानियां समाज से सीधा ताल्लुक रखती हैं। उनकी कहानियां समाज की पूरक हैं। चमन जी ने कहा कि प्रेमचंद केवल एक कथाकार ही नहीं थे , वह एक संस्था थे। कहानी की एक परम्परा का नाम प्रेमचंद है। प्रेमचंद ने इस कहानी के मुख्य पात्र के माध्यम से मज़हब की परिभाषा दी है कि समाज में परस्पर सौहार्द , प्रेम का निरुपण करना और कराना ही वास्तविक धर्म है।
वरिष्ठ रचनाकार श्री विनय श्रीवास्तव ने कहा कि प्रेमचंद की साम्प्रदायिकता पर लिखी गई कहानियों में ” हिंसा परमो धर्म: ” हर दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। आज के सामाजिक -राजनैतिक वातावरण में इस कहानी का पुनर्पाठ और विस्तृत चर्चा करने की आवश्यकता है।
सुविख्यात प्रतिष्ठित युवा कवियत्री सुश्री अन्जू सुन्दर ने कहा कि ” हिंसा परमो धर्म: ” कहानी में मुख्य पात्र जामिद मानवीय मूल्यों को चित्रित करता है। यह कहानीकार का वास्तविक सामाजिक दायित्व है जिसका निर्वाहन मुंशी प्रेमचंद ने किया है।
वरिष्ठ कवियत्री -साहित्यकार डॉ अवन्तिका सिंह ने कहा कि प्रेमचंद के चित्रित समाज की छवि आज भी समाज में दृष्टिगोचर हो रही है जिससे कहानी और कहानीकार दोनों को कालजयी कहना पड़ता है।
लगभग सौ साल पहले लिखी गई कहानी “हिंसा परमो धर्म: “आज भी अत्यंत प्रासंगिक है।
उन्नाव से पधारे वरिष्ठ सामाजिक -साहित्यिक गांधी वादी चिंतक और विचारक श्री अनिल विश्वराय ने कहा कि यह कहानी आज भी प्रासंगिक है । ऐसी कहानियों के मंचन की आवश्यकता है। स्कूली बच्चों द्वारा इस कहानी का मंचन कराया जाय तो कुछ सीमा तक हमें वर्तमान साम्प्रदायिक शक्तियों के खिलाफ माहौल बनाने में मदद मिलेगी।
सामाजिक चिंतक और विचारक, पीपुल्स यूनिटी फ़ोरम के संयोजक एडवोकेट वीरेंद्र त्रिपाठी ने कहा कि प्रेमचंद ने तत्कालीन सामंती महाजनी समाज की दुर्व्यवस्था, कुरीतियों -विषमताओं पर अपनी क़लम से कुठाराघात कर समाज में व्याप्त आर्थिक , सामाजिक असमानता को मिटाने का प्रयास किया। यह कहानी उसी दिशा में ले जाती है।

सामाजिक चिंतक और विचारक , शहीद स्मृति मंच के संयोजक श्री जय प्रकाश ने कहा कि प्रेमचंद इस कहानी के माध्यम से बताते हैं कि मज़हब का नाम सहानुभूति , प्रेम और सौहार्द है।
कार्यक्रम का संचालन कर रहे डॉ राही मासूम रजा साहित्य अकादमी के संस्थापक महामंत्री श्री राम किशोर ने कहा कि डॉ राही मासूम रज़ा का समस्त लेखन साम्प्रदायिकता के खिलाफ है और भारतीयता की तलाश में है । इसीलिए यह निर्णय लिया गया कि प्रति माह साम्प्रदायिकता को ललकारती हुई एक कहानी का पाठ हो और उस पर चर्चा हो।
राम किशोर जी ने कहा कि प्रेमचंद की यह कहानी आज के माहौल में अत्यंत प्रासंगिक है। कहानी पाठकों के लिए प्रश्न और मस्तिष्क में चिन्तन भाव-विचार छोड़ती है।

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