उपचुनाव में इंडिया गठबंधन टूटने की कगार पर, सिर्फ दो कमजोर सीट पर नहीं उतरना चाहती कांगेस

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India alliance on the verge of breaking in by-elections, Congress does not want to contest only on two weak seats.
कांग्रेस के प्रदेश स्तरीय नेता केवल गाजियाबाद और खैर सीट पर मैदान में नहीं उतरना चाहते हैं।

लखनऊ। यूपी में उपचुनाव का बिगुल बज चुका है, सपा ने जहां नौ में से सात सीटों पर प्रत्याशी घोषित कर चुकी हैं, वहीं कांग्रेस गठबंधन के तहत छोड़ी गई सीट पर नहीं उतना चाहती है, क्योंकि यह दोनों सीटों पर​ विपक्ष की स्थिति काफी कमजोर है। इस वजह से कांग्रेस अकेले उपचुनाव में उतरना चाहती है। इस तरह देखा जाए तो यूपी में इंडिया गठबंधन टूट सकता है। कांग्रेस के प्रदेश स्तरीय नेता केवल गाजियाबाद और खैर सीट पर मैदान में नहीं उतरना चाहते हैं। क्योंकि यहां अन्य सीटों के मुकाबले समीकरण अनुकूल नहीं दिख रहे हैं। यहां के परिणाम कांग्रेस के लिए भविष्य में सीटों के बंटवारे पर भी असर डालेंगे।

2027 से पहले दम दिखाने का मौका

कांग्रेस को डर है कि इन दोनों सीटों पर एक तरफ समीकरण अनुकूल नहीं हैं तो दूसरी तरफ उपचुनाव की तरह ही 2027 के चुनाव में भी उन्हें सीट के लिए सपा का मुंह ताकना पड़ेगा। सपा जो भी सीट छोड़ेगी, उसे स्वीकारना उनकी मजबूरी होगी। क्योंकि उपचुनाव के परिणाम के बाद आम चुनाव में कांग्रेस ज्यादा सीटें मांगने की हैसियत में ही नहीं रहेगी। यूपी की राजनीति में 2027 से पहले सभी दलों को दम दिखाने का आखिरी मौका है। यही वजह है कि कांग्रेस का एक धड़़ा गठबंधन का विरोध कर रहा है। इन नेताओं का तर्क है कि मन मुताबिक सीटें नहीं मिलने पर उपचुनाव से किनारा करना चाहिए। ऐसे में कांग्रेस के नेता उपचुनाव में गठबंधन पर कभी हां तो कभी ना कह रहे हैं। वे भाजपा को हराने की वकालत करते हैं, लेकिन गठबंधन कायम रहेगा या नहीं, यह मसला शीर्ष नेतृत्व पर छोड़ते हैं।

उपचुनाव से दूर रह सकती है कांग्रेस

प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने सोमवार शाम स्पष्ट किया कि उपचुनाव लड़ने से मना नहीं किया है, लेकिन सिर्फ दो सीटें नाकाफी हैं। प्रदेश के सभी नेताओं से मशविरा करके वस्तुस्थिति के बारे में शीर्ष नेतृत्व को अवगत करा दिया है। मंगलवार दोपहर तक स्थिति साफ हो जाएगी। शीर्ष नेतृत्व से मिले निर्देश के तहत ही आगे की रणनीति तैयार की जाएगी। भाजपा को हराना जरूरी है। इसके लिए जरूरत पड़ी तो कुर्बानी भी देने को तैयार हैं।

हरियाणा में कांग्रेस ने नहीं​ दिया था भाव

बता दें कि सपा-कांग्रेस के बीच लोकसभा चुनाव में गठबंधन हुआ, लेकिन हरियाणा, जम्मू कश्मीर के बाद अब मुंबई में यह कायम नहीं है। ऐसे में दोनों पार्टी के नेता दबी जुबान से एक-दूसरे को खुद के लिए सियासी तौर पर खतरा बताने में पीछे नहीं रहते हैं।। 2027 का विधानसभा चुनाव उसके लिए बड़ा मौका है। गठबंधन के तहत सपा ने टिकट देने में हाथ दबा दिया तो वह यह मौका खो देगी। लेकिन उसे यह भी भय सता रहा है कि यदि गठबंधन तोड़ने की पहल उसकी तरफ से हुई तो यही बात सपा जनता के बीच प्रचारित करेगी। ऐसे में भाजपा के विरोधी खेमे में कांग्रेस खलनायक साबित होगी।

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