मैं किसी से कभी माँगता कुछ नहीं ।
अब तुम्हारे सिवा चाहता कुछ नहीं।।
इस हकीकत से वाकिफ हुआ हूँ अभी
जिंदगी से किसी को मिला कुछ नहीं ।
शरीफों की बस्ती में आ के बसा
पर शराफत से घर में बचा कुछ नहीं।
सुर्खियों में रहा उम्र भर मैं मगर
अपने लोगों को भी दे सका कुछ नहीं ।
उसकी बाहों में जा के सुकूँ मिल गया
मौत से खूबसूरत दिखा कुछ नहीं ।
विष का प्याला पिया सिर्फ विश्वास पर
बच गया किस तरह मैं पता कुछ नहीं।
ये करिश्मा नहीं और क्या है भला
आग घर में लगी पर जला कुछ नहीं ।
——
~राम नरेश ‘उज्ज्वल’
मुंशी खेड़ा, (अपोजिट एस- 169, टी.पी.नगर)
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