आपातकाल की हिमायती कांग्रेस आज सड़क से लेकर संसद तक संविधान के लिए मैदान में

107
Congress, which is in favor of emergency, is today in the field for the Constitution from the streets to the Parliament.
25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक यानि 21 महीने देश में आपातकाल रहा।

नई दिल्ली। सत्ता का लालच कैसे नेताओं के मन से अच्छे- बुरे का भेद मिटा देता है, इसकी बानगी देश में आपातकाल लगाने वाली कांग्रेस पार्टी के इतिहास को देखकर लगाया जा सकता। महंगाई बेरोजगारी से आक्रोशित जनता के मूड को भांपते हुए आगामी चुनाव में संभावित हार की आशंका से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने सहयोगियों की मदद से 25 जून, 1975 को देश में आपातकाल की घोषणा कर दी। इससे देश में हाहाकार मच गया। मीडिया पर प्रतिबंध लग गया, विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार किया जाने लगा। 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक यानि 21 महीने देश में आपातकाल रहा। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक काल था।

चुनाव पर लगी रोक

आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए तथा नागरिक अधिकारों को समाप्त करके मनमानी की गई। इंदिरा गांधी के राजनीतिक विरोधियों को कैद कर लिया गया और प्रेस पर प्रतिबंधित लगा दिया गया। प्रधानमंत्री के बेटे संजय गांधी के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर पुरुष नसबंदी अभियान चलाया गया। जयप्रकाश नारायण ने इसे ‘भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काली अवधि’ कहा था।

 

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेहद विश्वासपात्र और बचपन के साथी रहे सिद्धार्थ शंकर रे को तत्कालीन कलकत्ता से बुलाया गया। 24 जून को बातचीत के दौरान सिद्धार्थ शंकर रे ने इंदिरा से देश में आपातकाल लगाने की सलाह दी। पीएम आवास से फौरन किसी को संसद की लाइब्रेरी से संविधान की एक कॉपी लाने को भेजा गया। प्रधानमंत्री के सचिवालय ने इमरजेंसी लगाने के लिए एक नोट पहले ही तैयार कर लिया था। आपातकालीन शक्तियों के तहत केंद्र किसी भी राज्य को कोई निर्देश दे सकता था।

इसलिए लगाया आपातकाल

आपातकाल लगाने के कारण पर अगर नजर डाली जाए तो इसके पीछे मुख्य वजह देश के युवा महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के चरम पर पहुंचने से बेहद गुस्से में थे। छात्र और युवा 72 साल के लोक​प्रिय नेता जयप्रकाश नारायण के पीछे अहिंसक और अनुशासित तरीके से लामबंद होने लगे थे। देश भर में कांग्रेस सरकारों के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे थे। ऐसे में 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जगमोहन लाल सिन्हा का ऐतिहासिक फैसला आया। रायबरेली से इंदिरा गांधी के लोकसभा चुनाव को समाजवादी नेता राजनारायण ने यह कहकर चुनौती दी थी कि इंदिरा ने चुनाव के प्रचार के दौरान गलत तरीके अपनाए थे।

जज ने इंदिरा के संसदीय चुनाव को अवैध घोषित कर दिया। उनकी लोकसभा सदस्यता रद्द करने के साथ ही उन्हें छह वर्षों तक चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य भी घोषित कर दिया। 24 जून को सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फैसले पर मुहर लगा दी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें प्रधानमंत्री बने रहने की छूट दे दी थी इसके बाद इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाने की साजिश रची जो लोकतंत्र के इतिहास में काला अध्याय साबित हुआ। अगले चुनाव में कांग्रेस को जनता का गुस्सा झेलते हुए हार का सामना करना पड़ा।

इसे भी पढ़ें…

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here