लखनऊ। mission 2027के लिए अभी से राजनीतिक दल गोटिया बिछाने में जुटे हैं। हर किसी कि नजर दलित वोटरों को लुभाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। जहां एक तरफ लगातार अखिलेश यादव सपा सांसद रामजीलाल सुमन के प्रकरण को उठाकर दलितों को लुभा रहे है। वहीं कांग्रेस दलितों को पार्टी से जोड़ने के लिए विधान क्षेत्र वार कार्यक्रम की तैयारी है। वहीं अपने आप को दलित समुदाय का चेहरा बताकर राजनीति करने वाले चंद्रशेखर उर्फ रावण लगातार हर मुददे पर सक्रिय है।
राजधानी में डॉ. भीमराव आंबेडकर के साथ अखिलेश यादव का चेहरा जोड़कर दलितों के सामने अखिलेश को आंबेडकर का उत्तराधिकारी बनाकर पेश किया जा रहा है। राजधानी में लगा यह होर्डिंग सपा के सम-सामायिक दांव-पेच समझने और समझाने के लिए काफी है। यह सपा की राजनीतिक चाल की दिशा क्या है। यह भी कि अबू आसिम आजमी के मुद्दे पर एक तरह की रणनीतिक चुप्पी साध लेने वाला सपा नेतृत्व रामजी लाल सुमन पर इतना मुखर क्यों है?
बसपा को वोटबैंक खिसकने की चिंता
दलितों पर हमले और उत्पीड़न के बढ़ते मामलों को लेकर जारी सियासत ने बसपा की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। सपा सांसद रामजी सुमन पर हुए हमले को मुद्दा बनाकर दलितों के बीच अपनी सियासी जमीन को मजबूत कर रही है, जिससे बसपा को अपना वोटबैंक खिसकने की चिंता सताने लगी है। बसपा गौतमबुद्ध और डॉ. भीमराव आंबेडकर की प्रतिमाओं को क्षतिग्रस्त करने, दलितों की बरात पर होने वाले हमले और उनके उत्पीड़न के खिलाफ आवाज तो उठा रही है, लेकिन उसे उम्मीद के मुताबिक समर्थन नहीं मिल रहा है। इस पर पार्टी हाईकमान ने वरिष्ठ नेताओं को अब दलितों के साथ होने वाली घटनाओं की गहनता से पड़ताल करने और उनके घरों पर जाकर रिपोर्ट देने के निर्देश दिए हैं। इसके बाद पार्टी इस मुद्दे पर बड़ा आंदोलन शुरू करने की रणनीति तय करेगी। हालांकि, पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों का मानना है कि बसपा को सपा से ज्यादा आजाद समाज पार्टी से नुकसान हो रहा है।
आकाश पर भी ऊहापोह
बसपा में पूर्व नेशनल को-आर्डिनेटर आकाश आनंद को कोई अहम जिम्मेदारी नहीं देने से भी कार्यकर्ता निराश हैं। दरअसल, आजाद समाज पार्टी का मुकाबला करने और युवाओं को पार्टी के साथ जोड़ने के लिए आकाश आनंद को मुफीद माना जा रहा था। उनकी जगह मायावती ने अपने पुराने वरिष्ठ पदाधिकारी राजाराम को नेशनल को-ऑर्डिनेटर बना दिया है जिससे आकाश के समर्थक निराश हैं। वहीं, बिहार चुनाव की जिम्मेदारी नेशनल कोे-ऑर्डिनेटर रामजी गौतम को सौंपी गई है।
सपा की सोची समझी रणनीति
करणी सेना को लेकर यूपी के मुख्य विपक्षी दल का रुख उसकी सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। समाजवादी सार्वजनिक रूप से भले ही यह स्वीकार न करें कि अखिलेश सरकार के जाने में आमजन के बीच पैदा हुई उस धारणा का बड़ा हाथ था कि सपा सरकार खास जाति और धर्म के लोगों को तरजीह देती है। पर हार के आत्म विश्लेषण में इसे बखूबी स्वीकार करते हैं। समाजवादियों का मानना है कि करणी सेना के रूप में वैसा ही हथियार अब सत्ता पक्ष ने भी उन्हें मुहैया करा दिया है। वे आमजन के बीच इस बात को प्रमुखता से उठा रहे हैं कि आखिर करणी सेना के लोगों को फंडिंग कहां से हो रही है।
जाटव वोटबैंक पर भी नजर
रामजी लाल सुमन जाटव बिरादरी से हैं, यह जाति अब भी बसपा का मजबूत जनाधार मानी जाती है। इसके लिए डॉ. आंबेडकर ईश्वर से कम नहीं हैं। इस पूरे संघर्ष के जरिये सपा की नजर मायावती के बचे वोटबैंक पर भी है। एक-दूसरे में समाया हुआ डॉ. आंबेडकर और अखिलेश का चित्र सपा की यही रणनीति स्पष्ट कर रहा है। लोकसभा चुनाव के परिणाम इस रणनीति की झलक दे चुके हैं। अब यह तो सत्ताधारी भाजपा को देखना है कि वो करणी सेना और रामजीलाल सुमन के मामले को कैसे हैंडल करती है और सपा के इस प्रयोग का क्या जवाब ढूंढती है।
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