लिखावट के मंच पर नीलोत्पल की कविताएं ‘जो धर्म सहिष्णु नहीं बनाता उसे छोड़ दो’

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लखनऊ। ‘क्या होगी इस वक्त की सही आवाज/जो हमारे चुप रहने से /ज्यादा जरूरी होगी ….क्या वह फतवों- फरमानों के बारे में /लिखी जाएगी /या होगी उन पत्थरों के लिए/ जो पूजे, तोड़े और फेंके जाते हैं’

ये काव्य पंक्तियां कवि नीलोत्पल की हैं। लिखावट की ओर से ऑन लाइन आयोजित एकल कविता पाठ कार्यक्रम में उन्होंने अपनी अनेक कविताओं का पाठ किया। अपनी इस कविता में वे आगे कहते हैं ‘क्या होगा इस दुनिया में सदी का सच/ हम पेड़ों, गुफाओं और अपनी असभ्य खोल के भीतर/ जीवित रहेंगे /आखिरकार /हमारे पास तय करने के लिए कुछ नहीं होगा/ सिवाय जख्मों और निराशा के’।

नीलोत्पल ने मां को लेकर प्रेम, करुणा और ममता से भरी कविता सुनाई और कहा कि वह ‘पानी में घुली लोकधुन’ है। अपनी कविता में वे पीठ की अनेक छवियां उकेरते हैं। एक कविता में वे कहते हैं कि ‘नदी हमारे होने का जिंदा एहसास है’, वहीं एक अन्य कविता में भाव कुछ यूं प्रकट होता है कि ‘चीजें नहीं आदमी अपनी शक्लें बदल रहा है’ । कवि की प्रकृति से लेकर जनजीवन तक की चिंता है। वह कहता है ‘यह पेड़ उगाने का समय है’ और यह भी कि ‘जो धर्म सहिष्णु नहीं बनाता उसे छोड़ दो’।

इस मौके पर नीलोत्पल ने ऐसी कविताएं भी सुनाई जिनमें सत्ता व्यवस्था की आलोचना या उस पर टिप्पणी है जैसे ‘बुलडोजर’। उन्होंने कोरोना काल में लिखी अपनी कविताओं का भी पाठ किया जो प्रवासी मजदूरों के दर्द और सरकार की लापरवाही को उजागर करती हैं। नीलोत्पल ने क्रिकेट जैसे खेल पर लिखी कविता भी सुनाई। इसमें जीवन के विविध संदर्भों और प्रसंगों को इस खेल के माध्यम से अभिव्यक्त किया गया है।

कवि और गद्यकार मिथिलेश श्रीवास्तव ने क्रिकेट पर लिखी नीलोत्पल की कविता पर खास टिप्पणी करते हुए कहा कि क्रिकेट भारत का लोकप्रिय खेल है, कुछ कवि भी खेलते होंगे, देखते तो होंगे ही। क्रिकेट पर हिंदी में कविताएँ फिलहाल मेरी स्मृति में आ नहीं रहीं हैं। उन्होंने नीलोत्पल की काव्ययात्रा का परिचय देते हुए कहा कि उनका नवीनतम कविता संग्रह- ‘‘समय के बाहर सिर्फ़ पतझर है’। यह हाल में प्रकाशित हुआ है। इसके पहले दो संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। वे हैं : ‘अनाज पकने का समय’ और ‘पृथ्वी को हमने जड़ें दी हैं’।

नीलोत्पल की कविताओं पर टिप्पणी करते हुए कवि और संस्कृतिकर्मी कौशल किशोर ने कहा कि इन कविताओं में जीवन के अनेक रंग हैं। ये जीवन राग से ओतप्रोत और प्रेम, करुणा, ममता व संवेदना से भरी कविताएं हैं। यहां सत्ता व्यवस्था के प्रति विरोध और प्रतिरोध भी है परंतु वह उग्र नहीं बल्कि उनमें संयम और शालीनता है। निलोत्पल के पास समर्थ भाषा और अपनी बातों को कहने का खूबसूरत लहजा है। ज्योति पारीक ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि नीलोत्पल जी की कविताओं में जीवन संगीत है। यह हमारे मन मस्तिष्क को झंकृत करती हैं।

रिपोर्ट: मिथिलेश श्रीवास्तव
लिखावट की ओर से

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