उम्र नहीं कोई बधन: यूपी का यह स्टार्टअपपरिवारों को कर रहा है एक दूसरे के साथ कनेक्ट

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Age Nahi Koi Badhan: This UP startup is connecting families with each other
अच्छी बात यह थी कि ग्राफिक डिज़ाइनिंग कोर्स हिंदी में पढ़ाया जा रहा था और कोई भी अपने फोन की मदद से इसे आसानी से कर सकता था।
  • देश के दूर-दराज के इलाकों से आई प्रेरक कहानियां बताती हैं कि कैसे कोविड-19 के दौरान भारत की शिक्षा प्रणाली में बड़ा बदलाव आया है
  • ऐडटेक प्लेटफॉर्म सफलता अब 10 साल से 72 साल तक के लोगों के लिए उपलब्ध करा रहा है किफ़ायती एवं सुलभ कोर्सेज़, जो हर उम्र के लोगों में हो रहे हैं लोकप्रिय
  • उनके ज़्यादातरछात्र लिंक्डइन पर सक्रिय हैं और अपना कारोबार बढ़ाने के लिए सोशल मीडिया टूल्स का उपयोग कर रहे हैं

मथुरा -बिजनेस डेस्क। मथुरा से सेवानिवृतबैंक मैनेजर 72 वर्षीय जीएस पाण्डेय के लिए कोविड-19 महामारी दोहरी मार लेकर आई, कोविड के डर के बीच सेवानिवृत्ति के बाद का उनका जीवन अलग-थलग पड़ गया, अपने सभी रिश्तेदारों और पहचान वालों से दूरियां बन गईं। इस समय सामाजिक समारोहों पर रोक लगा दी गई थीं। ढेरों अन्य परिवारों की तरह पाण्डेय परिवार भी अकेलेपेन से जूझ रहा था।

मई 2020 में छात्रों पर महामारी के प्रभावों का अध्ययन किया गया। अध्ययन में पता चला कि हर 10 में से 7 किशोर मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं से जूझ रहे थे, इस दौरान 61 फीसदी छात्र अकेलेपन, 43 फीसदी छात्र अवसाद और 55 फीसदी छात्र चिंता का शिकार थे।

ग्राफिक डिज़ाइनिंग कोर्स हिंदी में पढ़ाया

यह समय बेहद मुश्किल था, मथुरा के जीएस पाण्डेय ने सफलता के बेसिक ग्राफिक डिज़ाइनिंग कोर्स में अपना नाम लिखवा दिया और बाद में उनसे प्रेरित होकर उनके परिवार के कई सदस्यों ने भी ऐसा ही किया। सेवानिवृत्त बैंक मैनेजर पाण्डेय ने पिछले 12 सालों से काम नहीं किया था। अपने अनुभव के बारे में बताते हुए वे कहते हैं ‘‘अखबार में आए एक विज्ञापन से मुझे इस प्लेटफॉर्म के बारे में पता चला, शुरूआत में अपनी उम्र को देखते हुए मैं यह कोर्स नहीं करना चाहता था।

युवा पीढ़ी के साथ जुड़ने का अवसर

अच्छी बात यह थी कि ग्राफिक डिज़ाइनिंग कोर्स हिंदी में पढ़ाया जा रहा था और कोई भी अपने फोन की मदद से इसे आसानी से कर सकता था। मेरे पोता-पोती और परिवार के लगभग सभी सदस्य उस समय अपने फोन पर ही सभी ज़रूरी काम करते थे, मैं भी फोन के माध्यम से ही उनके साथ जुड़े रहने के लिए प्रेरित हुआ। इससे न सिर्फ मेरे समय का सदुपयोग होने लगा, बल्कि मुझे युवा पीढ़ी के साथ जुड़ने का अवसर भी मिला।’ शुरूआत में वे ये कोर्स नहीं करना चाहते थे, क्योंकि बैच में उनकी उम्र सबसे ज़्यादा थी, लेकिन टीम सफलता

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