
धर्म डेस्क। शरद पूर्णिमा का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। अश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा कहते हैं। शरद पूर्णिमा को वर्षा और शीत ऋतु का संधिकाल माना जाता है। इस दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण कला में होता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा अमृत की वर्षा करते हैं। इस दिन चंद्रमा का पूजन करने और इनकी रोशनी में नहाने से स्वस्थ और निरोगी काया की प्राप्ति होती है।
साथ ही शरद पूर्णिमा को मां लक्ष्मी का पूजन विशेष लाभकारी बताया गया है। पौराणिक मान्यतानुसार मां लक्ष्मी का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। इस दिन अष्टलक्ष्मी के पूजन का विधान है। बताया जाता है कि अष्टलक्ष्मी के पूजन से धन-धान्य की प्राप्ति होती है।
तिथि—मुहूर्त
हिंदी पंचांग के मुताबिक अश्विन मास की पूर्णिमा तिथि अर्थात शरद पूर्णिमा आज 19 अक्टूबर दिन मंगलवार को मनाई जा रही है। अश्विन पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ 19 अक्टूबर को शाम 07 बजे से शुरू होगी। यह शरद पूर्णिमा 20 अक्टूबर को रात्रि 08 बजकर 20 मिनट पर समाप्त होगी।
आचार्य अनिल पाण्डेय बताते हैं कि शरद पूणिमा में चंद्रमा का पूजन शाम को चन्द्रोदय के बाद करने का विधान है। बिना चंद्र दर्शन के शरद पूर्णिमा की पूजा अधूरी रहती है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा पूजन का शुभ मुहूर्त क्या है? बताया गया कि 19 अक्टूबर की शाम को 5 बजकर 27 मिनट पर चंद्रोदय के बाद पूजन का शुभ मुहूर्त है।
मां लक्ष्मी पूरी रात पृथ्वी पर करती हैं भ्रमण
शास्त्रों में वर्णित मान्यतानुसार शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा और मां लक्ष्मी के पूजन का विधान है। बताया जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों अमृत के समान होती हैं। इस दिन चंद्र दर्शन और चंद्रमा की रोशनी में रखी खीर को सुबह खाने से निरोगी काया और स्वास्थ्य लाभ की प्राप्ति होती है।
ऐसी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी पूरी रात पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं। इनके पूजन से घर में धन-संपदा का आगमन होता है। सुख—समृद्धि की वृद्धि होती है।
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