बढ़ते बिजली संकट के बीच देश में गहराया ब्लैकआउट का खतरा, जानिए क्या है कारण…

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केजरीवाल ने केंद्र को लिखा है कि कोयले से चलने वाले 135 संयंत्रों में से आधे से अधिक के पास केवल तीन दिन का कोयला बचा है। ये संयंत्र देश को आधे से अधिक बिजली आपूर्ति करते हैं।

नई दिल्ली। भारत में लगातार बिजली संकट गहराता जा रहा है। देश की राजधानी दिल्ली में तो ब्लैकआउट की चेतावनी भी जारी कर दी गई है। वहीं देश के सबसे बड़े सूबे यूपी में आठ संयंत्र अस्थाई तौर पर ठप हो गए हैं। इधर पंजाब और आंध्र प्रदेश ने भी पॉवर प्लांट में कोयले की कमी जाहिर की है। ऐसे में केंद्र के सामने राज्यों की मांग को पूरा करना एक चुनौती बनकर खड़ा हो गया है। इधर केंद्र सरकार के मुताबिक ऊर्जा मंत्रालय के नेतृत्व में सप्ताह में दो बार कोयले के स्टॉक की समीक्षा की जा रही है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुता​बिक दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि यदि केंद्र जल्द से जल्द जरूरी कदम नहीं उठाता है तो राजधानी को बिजली संकट का सामना करना पड़ सकता है। केजरीवाल ने केंद्र को लिखा है कि कोयले से चलने वाले 135 संयंत्रों में से आधे से अधिक के पास केवल तीन दिन का कोयला बचा है। ये संयंत्र देश को आधे से अधिक बिजली आपूर्ति करते हैं। वहीं ऊर्जा मंत्रालय के मुताबिक कोरोना से जूझती अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए बड़ी मात्रा में फैक्ट्रियों व कंपनियों को संचालित किया गया।

बताया गया कि इससे बिजली की मांग और खपत बढ़ती चली गई। बताया गया कि देश में बिजली की दैनिक खपत बढ़कर चार अरब यूनिट हो गई। यह मांग 65 से 70 प्रतिशत कोयले से चलने वाले संयंत्रों से पूरी की जा रही है। मिली जानकारी के मुताबिक 2019 में अगस्त-सितंबर महीने में देश में 106.6 बिलियन यूनिट की खपत थी, जो 2021 तक बढ़कर 124.2 बिलियन यूनिट हो गई।

बताया गया कि बाहर से आयात होने वाले कोयले के दाम सितंबर अक्तूबर में 160 डॉलर प्रति टन हो गए, जो मार्च में 60 डॉलर प्रति टन थे। अचानक दामों में आई वृद्धि के कारण बाहर से आयात होने वाले कोयले में कमी आई और घरेलू कोयले पर निर्भरता बढ़ती चली गई। इस कारण आयातित कोयले से बिजली उत्पादन में 43.6 प्रतिशत की कमी आई। बताया गया कि अप्रैल से सितंबर के बीच घरेलू कोयले की मांग 17.4 मीट्रिक टन बढ़ गई।

बढ़ते बिजली संकट के बीच इन कारणों को जानना भी जरूरी
1. कोरोना से जूझ रही अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए बिजली की मांग बढ़ी है। 2. सितंबर माह में कोयले की खदान वाले क्षेत्रों में भारी बारिश के कारण भी कोयले के उत्पादन पर भी इसका असर पड़ा है। 3. बाहर से आने वाले कोयले की कीमतों में काफी वृद्धि हुई है। इससे संयंत्रों में बिजली उत्पादन में कमी आई। बताया जा रहा है कि मांग को पूरा करने के लिए घरेलू कोयले पर निर्भरता बढ़ती गई। 4. मानसून की शुरुआत में पर्याप्त मात्रा में कोयले का स्टॉक नहीं हो पाया। बताया गया कि महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में कोयला कंपनियों पर भारी बकाया के कारण संकट और अधिक बढ़ गया।

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