नागपुर:अपने ही गढ़ में कमजोर हो रही RSS! इन नतीजों ने बढ़ाई बेचैनी

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नागपुर। सर्वश्रेष्ठ संगठनों में शुमार तथा भारतीय जनता पार्टी की मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी RSS अपने ही गढ़ में कमजोर होता नजर आ रहा है। इसको लेकर बेचैनी भी लगातार बढ़ रही है। दरअसल RSS का मुख्यालय नागपुर में है। नागपुर महानगर पालिका पर बीते 15 सालों से बीजेपी का कब्जा है। बीते दो बार से नागपुर से बीजेपी के नितिन गडकरी लोकसभा चुनाव जीत रहे हैं और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस यहां से विधानसभा चुनाव लड़ते हैं। नागपुर उनका घर है। बावजूद इसके हाल ही में आए जिला परिषद और पंचायत समिति के नतीजे बीजेपी के लिए उत्साहजनक नहीं हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक नागपुर जिले में आने वाली जिला परिषद की 16 सीटों में से 9 कांग्रेस ने जीत ली हैं। बीजेपी महज 3 सीटें जीत सकी।

वहीं 2012 से 2017 वाले कार्यकाल में बीजेपी इसी जिला परिषद में शिवसेना के साथ बहुमत में रही है। पार्टी के एक सीनियर नेता के मुताबिक नरेन्द्र मोदी के जीतने के बाद जहां भी छोटे-बड़े चुनाव हुए, वहां हमें सफलता मिली लेकिन इस बार परफॉर्मेंस ज्यादा ही खराब हो गया।

उधर कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में उत्साह है, क्योंकि उन्होंने 9 सीटें जीत ली हैं। ऐसे में सवाल खड़े हो रहे हैं कि जिस शहर में संघ का मुख्यालय है और जहां से बीजेपी के दो दिग्गज नेता नितिन गडकरी और देवेंद्र फडणवीस आते हैं, वहां बीजेपी इतनी पिछड़ी क्यों। बताया जाता है कि कांग्रेस ने इस चुनाव में अपने मंत्री सुनील केदार और नितिन राउत को पहले दिन से ही मैदान में दौड़ा रखा था। कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी नाना पटोले खुद पूरा कैंपेन देख रहे थे। जबकि बीजेपी के दिग्गज नेता देवेंद्र फडणवीस और नितिन गडकरी कैंपेन से दूर ही रहे।

बीजेपी ने चंद्रशेखर बावनकुले को कैंपेन की जिम्मेदारी सौंपी। उन्होंने कई रैलियां भी कीं, मगर कार्यकर्ता उत्साहित नहीं हो पाए। बावनकुले को खुद को ही विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं मिला था। ऐसे में विपक्षियों ने यह सवाल भी जनता के बीच उठाया कि जिसे खुद ही टिकट नहीं मिला वो आप लोगों का नेतृत्व कहां और कैसे कर सकेगा। वहीं सीनियर जर्नलिस्ट अशोक वानखेड़े के मुताबिक बीजेपी महाराष्ट्र में अपने अंदरूनी झगड़े के कारण कमजोर हो रही है और शिवसेना-एनसीपी और कांग्रेस की तिकड़ी ने उसकी चुनौतियों को दोगुना कर दिया है, क्योंकि वे एक रणनीति के साथ मिलकर लड़ रहे हैं। बताया गया कि यदि महाविकास आघाड़ी इसी तरह परफॉर्म करते रहा तो लोकसभा की 48 में से 8 सीटें जीतना भी बीजेपी के लिए मुश्किल हो सकता है।

बताया गया कि पिछली बार बीजेपी का प्रदर्शन अच्छा था, लेकिन तब बीजेपी और शिवसेना साथ-साथ थे। इस बार ऐसा नहीं है। अभी जो लोकल बॉडीज के नतीजे आए हैं, उससे लोगों का रुझान पता चलता है। माना जा रहा है कि नितिन गडकरी और देवेंद्र फडणवीस के नागपुर में भी बीजेपी का अच्छा प्रदर्शन न कर पाना उसके लिए एक चेतावनी की तरह है। यहां किसान आंदोलन का भी असर था और महंगाई ने भी बीजेपी को नुकसान पहुंचाया, लेकिन बीजेपी की हार की सबसे बड़ी वजह अंदरूनी कलह रही। महाराष्ट्र के पॉलिटिकल स्ट्रैटजिस्ट केतन जोशी के मुताबिक, साल 2019 में विधान परिषद की 6 सीटों पर चुनाव हुए थे, इनमें से 5 महाविकास आघाड़ी ने जीती थीं। इनमें नागपुर की एक ऐसी सीट भी बीजेपी हारी थी, जहां बीते 55 सालों से वो सत्ता में थी।

ऐसा देखने में आया है कि महाविकास आघाड़ी ने जहां-जहां बेहतर कॉर्डिनेशन बनाकर चुनाव लड़ा, वहां-वहां उन्हें सफलता मिली। बीजेपी ने पालघर में राज ठाकरे की पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की कोशिश की थी लेकिन उसे सफलता नहीं मिल सकी।

इसी तरह 2019 के लोकसभा चुनाव में विदर्भ रीजन में कांग्रेस ने सिर्फ चंद्रपुर सीट जीती थी, लेकिन उसके 6 महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में उसने कई सीटें जीतीं। इन सब तथ्यों से पता चलता है कि विदर्भ में कांग्रेस एक बार फिर जिंदा हो रही है। गौरतलब है कि विदर्भ साल 1990 तक कांग्रेस का स्ट्रॉन्ग होल्ड रहा है, मगर बाद के सालों में यहां बीजेपी धीरे-धीरे मजबूत हुई। ग्रामीण क्षेत्रों में तो उतनी पकड़ नहीं बन सकी, लेकिन शहरी क्षेत्रों में पार्टी ने जरूर इलाका बढ़ाया, कांग्रेस सिमटती गई। मगर अब फिर कांग्रेस यहां मजबूत होने लगी है।

जिला परिषद के चुनाव बहुत छोटे होते हैं, लेकिन इनसे जनता का मिजाज पता चलता है। जानकारी के मुताबिक महाराष्ट्र में जिला परिषद की 85 और पंचायत समिति की 144 सीटों पर हुए उपचुनाव में महाविकास आघाड़ी (शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी का संयुक्त मोर्चा) ने BJP को पछाड़ा है।जिला परिषद की 85 सीटों में से 22 सीटें जीतकर बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी, लेकिन शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के गठबंधन यानी महाविकास आघाड़ी को 46 सीटें मिलीं। इसी तरह पंचायत समिति में बीजेपी को 33 सीटें मिली, जबकि कांग्रेस ने 35 सीटें जीत लीं। वहीं महाविकास आघाड़ी के खाते में कुल 73 सीटें गईं।

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