
श्रीनगर।पिछले एक सप्ताह से जम्मू कश्मीर में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को निशाना बनाए जाने के बाद से यहां से अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के अंदर भय समा गया। भले ही सरकार आंतकियों को सबक सिखाने के लिए कई प्रयास कर रही है, लेकिन इससे अल्पसंख्यक समुदाय के अंदर बैठा भय खत्म नहीं हो रहा है।
आपकों बता दें कि एक तरफ तो केंद्र और जम्मू-कश्मीर सरकार विस्थापितों को बसाने की बात कर रही है, लेकिन आतंक की नई लहर के चलते दोबारा पलायन शुरू हो गया है। अध्यापकों और कारोबारियों तक पर हुए हमलों से दहशत में आए सिख और कश्मीरी पंडित समुदाय के लोग जम्मू से वापस लौट रहे हैं, जहां गैर-मुस्लिमों की बहुलता है। शिक्षकों समेत अन्य सरकारी कर्मचारी जम्मू लौट रहे हैं और कुछ ने घाटी से बाहर ट्रांसफर की मांग की है। इसके अलावा कई तो सुरक्षा की बढ़ती चिंताओं की वजह से काम पर ही नहीं आ रहे हैं।
अल्पसंख्यक समुदाय परेशान
श्रीनगर में शिक्षा विभाग में कनिष्ठ सहायक सुशील शुक्रवार अचानक जम्मू लौट आए। उन्होंने कहा, “हम कश्मीर से बाइक पर भागे हैं। मालूम हो कि श्रीनगर में एक सिख महिला प्रिंसिपल और एक कश्मीरी हिंदू शिक्षक की हत्या के बाद ऐसी स्थिति बनी है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, सुशील ने बताया, “जब हम कश्मीर की सड़कों पर चलते हैं तो हमें एक ही ख्याल आता है कि जो कोई भी हमारी तरफ देख रहा है, वो हमें गोली मार देगा।”
सुरक्षा बलों आ अभियान जारी
जम्मू लौटने वालों के लिए सुरक्षा सर्वोपरि चिंता है। सिद्धार्थ रैना (बदला हुआ नाम) सिर्फ दो साल के थे, जब उनका परिवार 1990 में एक लाख से अधिक पंडितों के साथ 1990 में कश्मीर छोड़ दिया था। सिद्धार्थ शुक्रवार को अपनी पत्नी के साथ अनंतनाग से जम्मू के लिए रवाना हुए।
उन्होंने इसे “नींद रहित और भयावह रात” करार दिया है। आपकों बता दें कि लगातार सुरक्षाबल आंतकियों को कार्रवाई करके मार गिरा रहे है, लेकिन अफगानिस्तान में तालिबान शासने की वापसी के बाद से जम्मू—कश्मीर में फिर से आतंकी घटनाएं बढ़ने लगी है। इस बार आतंकी कुछ चुनिंदा समुदाय को निशाना बना रहे है, इस वजह से अल्पसंख्यक समुदाय के लोग कश्मीर को छोड़ना शुरू कर दिया है।
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