लखनऊ।
आज अंतरराष्ट्रीय गिद्ध जागरूकता दिवस पर ग्रीन चौपाल फाउंडेशन के तत्वावधान में “गिद्ध संरक्षण- प्रकृति की आवश्यकता” विषय को लेकर एक वर्चुअल चौपाल का आयोजन किया गया। एलडीए कानपुर रोड स्थित एजेएस एकेडमी में आयोजित चौपाल में मुख्य वक्ता वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ. जितेंद्र शुक्ला ने प्रकृति में गिद्धों केविशेष महत्व पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला। उन्होंने गिद्धों को संरक्षित करने के लिए विभिन्न सावधानियां एवं उपाय को बता कर लोगों को जागरूक करने की एक महत्वपूर्ण मुहिम की शुरुआत की।डॉ. शुक्ला ने बताया कि नब्बे के दशक में भारत में गिद्धों की कुल जनसंख्या 40 लाख के
आसपास थी, जो कि अब कुछ हजारों में ही बची है। हमारे पौराणिक ग्रंथों में भी इनका उल्लेख जटायु आदि के रूप में मिलता है। वर्तमान समय में मानवीय भूल के कारण इनका अस्तित्व संकट में आ गया है।मुख्यतः पालतू पशुओं को दी जाने वाली दर्द निवारक दवा डाइक्लोफिनेक के कारण गिद्ध किडनी की गंभीर बीमारी से ग्रसित हुए और इनका समूह लाखों की संख्या में मौत के आगोश में समा गया। इसके अतिरिक्त डीडीटी क्लोरीन युक्त हाइड्रोकार्बन के अंधाधुंध प्रयोग ने भी इन को समाप्त करने का कार्य किया। वास्तव में गिद्धों का पारितंत्र में महत्वपूर्ण स्थान रहा है। यह प्रकृति के अपमार्जक हैं, जो किसी भी सड़े-गले जानवर को खाकर पचा सकते हैं, क्योंकि इनके पाचक रस में यह विशेषता पाई जाती है।लेकिन गिद्धों के जीवन के संकट में आ जाने से यह सड़े-गले जानवर विभिन्न प्रकार की बीमारियों के वाहक बन रहे हैं।
डॉ. शुक्ला ने कहा कि भारत में गिद्धों की कुल 5 प्रजातियां हैं, जबकि संपूर्ण विश्व में लगभग 22 प्रजातियां पाई जाती हैं। इनकी दृष्टि इतनी तेज होती है कि आसमान से उड़ते हुए भी अपने भोजन को देख लेते हैं। यह मुख्य रूप से 6 वर्ष में वयस्क बनते हैं तथा एक बार में सिर्फ एक ही अंडा देते हैं। इनकी औसत आयु 37 से 40 वर्ष तक होती है।
डॉ. शुक्ला ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय संस्था आईयूसीएन ने गिद्धों को गंभीर संकटग्रस्त प्रजाति की श्रेणी में रखा है, जिसका अर्थ यह है कि पारिस्थितिकी तंत्र से कभी भी यह समाप्त हो सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय गिद्ध जागरूकता दिवस के अवसर पर हमें यह संकल्प लेने की आवश्यकता है कि आम जनमानस को डाइक्लोफिनेक के दुष्परिणाम और गिद्ध संरक्षण के महत्व को बताया जाए, जिससे डाइक्लोफिनेक के स्थान पर पशुपालक मेलौक्सिकेम के दवा का प्रयोग करें, जिससे भविष्य में फिर से गिद्धों का झुंड आसमान में उड़ान भर सके।