नवेद शिकोह, लखनऊ। यूपी की सियासत की तस्वीर अभी साफतौर से सामने नहीं आई है लेकिन धुंधले आइने में बहुत कुछ दिखाई दे रहा है। मसलन जाति और और धर्म के आधार पर वोट लेने वाली तमाम पार्टियों की सौतन बनने को तैयार बैठी हैं उनके ही जैसे एजेंडे वाली छोटी-छोटी पार्टियां। एक तरह ये ठीक भी होगा। क्योंकि धर्म और जाति के नाम पर पैदा हो रहे छोटे दल यदि धर्म-जाति की राजनीति पर एकक्षत्र राज करने वाले बड़े दलों को कमजोर करेंगे तो ये समझ कर राहत महसूस कीजिएगा कि जहर-जहर को मार रहा है। कम से कम धर्म और जातिवाद की राजनीति करने वाले आपस में टकरा कर ही सही कमजोर तो हों।
हर किसी का विकल्प
लोकतांत्रिक व्यवस्था और मतदाताओं के लिए विकल्प मुफीद होते हैं। दुकानों का अभाव हो तो खरीदार को खराब क्वालिटी का सामान खरीदने पर मजबूर होना पड़ता है। यूपी के आगामी विधानसभा चुनाव में हर स्थापित दल से नाराज मतदाताओं के सामने अलग-अलग विकल्प होंगे। भाजपा एवं कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियों और सपा व बसपा जैसे दलों के अलावा दलितों-पिछड़ों और मुसलमानों के कथित खैरख्वाह कुछ छोटे दल एक मोर्चा तैयार करने की कवायद की तस्वीरें पेश कर रहे हैं।
जिसमें एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के ओमप्रकाश राजभर के गठबंधन के साथ भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद रावण भी शामिल होंगे तो मुस्लिम, पिछड़-दलित वोटबैंक को एक प्लेटफार्म पर लाने के लक्ष्य पर काम होगा। कहा ये जा रहा है कि इस तरह का मोर्चा भाजपा से मुकाबले का दावा कर रहे सपा के लिए के लिए घातक साबित होगा। ओवेसी के कारण मुस्लिम वोट बिखरेगा और भाजपा से नाखुश गैर यादव पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को राजभर सपा में जाने से रोक सकते हैं। इसी तरह बसपा के दलित वोट बैंक में चंद्रशेखर आजाद रावण सेंध लगाएंगे। हालांकि इस मोर्चे के मुख्य कर्ताधर्ता ओम प्रकाश राजभर खुद स्थिर नहीं हैं। कभी ओवेसी और चंद्रशेखर आजाद और अन्य दलों के साथ फ्रंट को मजबूती देने की बात करते हैं तो कभी वो सपा, बसपा या कांग्रेस के साथ जाने के विकल्पों को दोहरा रहे हैं।
भाजपा को फायदा क्यों नुकसान क्यों नहीं !
ओवेसी, राजभर और रावण का गठबंधन भाजपा को फायदा पहुंचाएगा और सपा-बसपा और कांग्रेस जैसे धर्मनिरपेक्ष दलों का नुकसान करेगा। ये धारणा गलत भी साबित हो सकती है। सिक्के के दूसरे पहलू को देखिए तो यूपी के पिछले विधानसभा चुनाव और पिछले दो लोकसभा चुनावी नतीजों पर गौर कीजिए तो भाजपा ने यूपी के सपा-बसपा के जनाधार पर सेंध लगाकर ओबीसी और दलितों के विश्वास को जीतकर भारी बहुमत से पिछले तीन चुनावों (एक विधानसभा और दो लोकसभा) में जीत हासिल की थी।
यानी आज सबसे पिछड़ा और दलित समाज भाजपा के जनाधार से जुड़ा है। इस लिहाज़ से राजभर और चंद्रशेखर रावण की क्रमशः पिछड़े-दलितों को साथ लाने की कोशिशें भाजपा को भी नुकसान पंहुचा सकती हैं। उधर कहां ये भी जा रहा है कि यूपी में किसी हद तक ब्राह्मण समाज भाजपा से नाखुश है। यदि ये सच है और कांग्रेस ने ब्राह्मण मुख्यमंत्री का इशाराभर भी कर दिया और ज्यादा ब्राह्मण उम्मीदवार उतारे तो यहां भी भाजपा का ये पारंपरिक कोर वोट बैंक भी कतर जाएगा।
भाजपा के वोट कतरने की रणनीति बना रही आप
विश्वसनीय सूत्र बताते हैं कि यूपी के चुनावों के मद्देनजर समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी ने मिलकर अंदरखाने एक साइलेंट रणनीति तैयार की है। जिसके तरह आप भाजपा से नाराज उन भाजपाई मतदाताओं को प्रभावित कर भाजपा का वोट काटने की तैयारी करेगी जो सपा, बसपा और कांग्रेस को विकल्प नहीं चुनते। जातिवाद और धर्मनिरपेक्षता से अलग आप राष्ट्रवाद और विकास के मुद्दों को लेकर भाजपा के विकल्प के तौर पर खुद को पेश करेगी। पेट्रोल के बढ़ते दाम, मंहगी बिजली, मंहगाई, बेरोजगारी, किसानों की समस्याओं और कोविड में बद इंतेजामी को लेकर सामान्य वर्ग का एक तब्का भाजपा से नाखुश होकर भी विकल्प के अभाव में मजबूरी में दोबारा भाजपा के समर्थन की बात कर रहा है। सपा, बसपा और कांग्रेस को बेहतर विकल्प न मानने वाले ऐसे तब्के पर डोरे डालने के लिए आम आदमी पार्टी लोकलुभावने वादों के साथ चुनाव में उतरेगी। और भाजपा के लिए वोटकटवा बनकर सपा को फायदा पंहुचाने की कोशिश भी करेगी।
सब कुछ ठीक रहा तो उत्तर प्रदेश में फरवरी-मार्च के दरमियान विधानसभा चुनाव होंगे और तकरीबन दिसम्बर-जनवरी के बीच चुनावी तारीखीं घोषित होने की संभावना है। 75 जिलों और 403 विधानसभा सीटों वाले इस बड़े चुनाव की तैयारी के लिए अब ज्यादा समय नहीं बचा है। ऐसे में कुछ छोटे दल जहां भाजपा और सपा के गठबंधन का हिस्सा बन चुके हैं वहीं बहुत सारे छोटे दल बड़े दलों के वोट बैंक का प्यार और विश्वास बांटने के लिए सौतन की तरह सज-धज कर तैयार हो रहे हैं।
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