प्रेमचंद के साहित्य में किसान जीवन का सच व्यक्त होता है: ओपी सिंहा

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The truth of peasant life is expressed in Premchand's literature: OP Singha
आज भी समाज में व्याप्त तमाम तरह की समस्याओं का समाधान प्रेमचंद के दिखाए गए रास्ते से बहुत ही आसानी से निकल सकता है।

लखनऊ। कलम के सिपाही मुंशी प्रेमचंद जयन्ती के अवसर पर ‘ प्रेमचंद का लेखन और किसानों की समस्याएं’ विषय संगोष्ठी का आयोजन सोशलिस्ट चिंतक श्री रामकिशोर की अध्यक्षता में हुई। संगोष्ठी में चर्चा की शुरुआत करते हुए पीपुल्स यूनिटी फोरम के संयोजक वीरेंद्र त्रिपाठी ने कहा कि प्रेमचंद का साहित्य किसान जीवन को उसकी समग्रता में व्यक्त करता है। प्रेमचंद के किसान पात्र उत्पीड़ित तो है लेकिन हर जगह बेहतर जीवन के लिए संघर्षरत है। उनका हर पात्र जीवंत और सक्रिय है। सामाजिक कार्यकर्ता वालेन्द्र कटियार ने कहा कि विश्व प्रसिद्ध साहित्यकार, उपन्यास सम्राट, कहानीकार मुंशी प्रेमचंद सही मायने में महान देशभक्त थे। उन्होंने देश की लगभग 95% आबादी के हित में उनकी समस्याओं को पहचाना और उन्हें उनकी समस्याओं से निकलने का रास्ता दिखाया। उन्होंने समाज में व्याप्त तमाम समस्याओं अशिक्षा, रूढ़िवादिता, जातीयता, छुआछूत, महिलाओं के प्रति भेदभाव, पूंजीवादी शोषण, हर तरह के अन्याय के खिलाफ समझौताहीन संघर्ष किया। इसीलिए उन्हें कलम के सिपाही की उपाधि मिली।

आज भी समाज में व्याप्त तमाम तरह की समस्याओं का समाधान प्रेमचंद के दिखाए गए रास्ते से बहुत ही आसानी से निकल सकता है। एमएम कटियार व केपी यादव ने कहा कि प्रेमचंद के साहित्य और विशेष तौर पर कहानियों में किसान जीवन की समस्याओं के हर पक्ष को उठाया गया है। प्रेमचंद का साहित्य अपने समय के किसान संघर्षों से प्रेरित था और आज उन समस्याओं का रूप बदल चुका है। पूंजी और बाजार की सत्ता किसानों को तबाह कर रही है, इसके खिलाफ किसानों का शानदार संघर्ष चल रहा है। आज के साहित्य को इस संघर्ष से प्रेरणा लेनी होगी।

जय प्रकाश ने कहा कि किसानों के बल पर ही हमारा समाज चल रहा है। आजादी के पहले की तुलना में स्थिति थोडी बेहतर हुयी है लेकिन शोषण और उत्पीड़न अभी भी जारी है।एआईडब्लूसी के अध्यक्ष ओपी सिन्हा ने कहा कि प्रेमचंद के साहित्य में किसान जीवन का सच व्यक्त होता है। इसके साथ ही उनके साहित्य में पूरे समाज का भी सच है और उनके बीच के संबंधों को भी सामने लाया गया है। किसान आंदोलन और आजादी की लडाई से जुड़कर प्रेमचंद ने एक नये भारत का खाका पेश किया था। उनके विचार आज भी हर तरह की तानाशाही, साम्प्रदायिकता, असमानता, धर्मान्धता के खिलाफ संघर्षरत है। हम इस विरासत के साथ आगे बढ़ सकते है।

तबस्सुम सिद्दीकी ने प्रेमचंद की कहानी पूस की रात की चर्चा के साथ किसानों की पीड़ा को व्यक्त किया। इस अवसर पर अजय शर्मा ने प्रेमचंद साहित्य के वर्गीय और मेहनतकश पक्ष के नजरिये की चर्चा की। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद साहित्य की क्रांतिकारी भूमिका को देखते हुए हमें उसे लोगों के बीच ले जाने का काम करना होगा। रामकिशोर ने अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में कहा कि प्रेमचंद ने अपने साहित्य के माध्यम से भारत के सामाजिक सांस्कृतिक जीवन को परिकृष्त करने मे बड़ा योगदान किया। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद का साहित्य पूरे समाज में वैचारिक प्रबोधन का कार्य कर रहा था और आज भी इसकी बडी भूमिका है। उनका साहित्य बेहद क्रांतिकारी है।

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