
अयोध्या । प्रगतिशील लेखक संघ जनपद इकाई अयोध्या की महत्वपूर्ण बैठक जनमोर्चा सभागार फैजाबाद में हुई। प्रलेस अयोध्या के नवनिर्वाचित अध्यक्ष वरिष्ठ कवि श्री स्वप्निल श्रीवास्तव ने सभा की अध्यक्षता की तथा अध्यक्ष मंडल के वयोवृद्ध सदस्य कॉमरेड अयोध्या प्रसाद तिवारी ने संचालित किया। सर्वप्रथम, वरिष्ठ मार्क्सवादी-आम्बेडकरवादी चिंतक, आलोचक एवं कवि कॉमरेड आरडी आनंद के कविता-संग्रह ‘नीला कोट लाल टाई’ का लोकार्पण हुआ।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कवि आशाराम जागरण ने कहा कि आरडी आनंद का यह कविता-संग्रह डॉ. आम्बेडकर के व्यक्तित्व और विचारधाराओं पर आधारित है। उनकी पहली कविता ही डॉ. आम्बेडकर पर है। उस कविता को पढ़कर डॉ. आम्बेडकर के विराट व्यक्तित्व का बोध होता है। कोई भी व्यक्ति, चाहे वह साहित्यिक हो अथवा राजनीतिक, आनंद के इस कविता के आधार पर यदि डॉ. आम्बेडकर का मूल्यांकन लिखने बैठ जाए तो निश्चित ही एक बहुत मोटा ग्रंथ तैयार हो जाएगा लेकिन तब भी उसे लगेगा कि शायद वह आरडी
आनंद के कविता के अनुसार डॉ. आम्बेडकर के व्यक्तित्व और विचारों को परिभाषित करने में सक्षम नहीं हो पाया है। यदि मैं उनकी इस कविता के मूल तत्व को यहां पर बताना चाहूं तो मुझे कहना पड़ेगा कि उन्होंने इस कविता के माध्यम से डॉ. आम्बेडकर के गुणसूत्रों को समाहित करने की कोशिश की है जिसको उन्होंने अपनी प्रज्ञा के बल पर बुद्ध के तात्विक विवेचना से ग्रहण किया था, जैसे त्रिसूत्र-समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व एवं प्रज्ञा, करुणा और शील। इसके अतिरिक्त पंचशील, अष्टांगिक मार्ग, लोकतंत्र, संसदीय लोकतंत्र और समाजवाद। मुझे लगता है आनंद जी ने इस कविता में न सिर्फ डॉ. आम्बेडकर और उनके विचारों को समाहित किया है बल्कि मनुष्य जीवन के लिए जरूरी सारे सिद्धांत को एक छोटी सी कविता में गागर में सागर की तरह रच दिया है।
इस तरह जब उनकी आगे की कविताओं में बढ़ते हैं तो वे डॉ. आम्बेडकर विचारधारा और दलित विचारधाराओं के अंतर्विरोधों को लिखने की पूरी कोशिश करते पाए जाते हैं। कहीं-कहीं पर उन्होंने डॉ. आम्बेडकर साहब का मानकीकरण करके उनके स्वयं के विचारों को उन्हीं के द्वारा जनमानस के मध्य रखवाया है तथा जनमानस जिन गलतियों को दोहरा रहा है उसको इंगित करते हुए सही मार्ग की व्याख्या कर उस पर चलने को निर्दिष्ट किया है।
आनंद की एक बहुत बड़ी कविता है ‘हे हेलो’। इस कविता को पढ़ते-पढ़ते व्यक्ति बोर होने लगता है लेकिन इस कविता में कहीं पर भी किसी बात की पुनरावृति नहीं हुई है इसलिए कुछ नए तथ्य की जानकारी और सामाजिक समस्याओं के हल को प्राप्त करने के लिए व्यक्ति इस कविता को बहुत ही उत्सुकतावश पढ़ डालता है। इस कविता को पूरा पढ़ने के बाद मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैंने बहुत अच्छा किया। दरअसल, इस कविता में आर डी आनंद ने पूजीपति वर्ग का मानकीकरण किया है तथा उसके द्वारा अपनी महत्वाकांक्षा और मजदूर वर्ग के शोषण की विधियाँ गिनाया है। इस कविता में न सिर्फ मजदूर वर्ग बल्कि दलित वर्ग के बहुआयामी अंतरद्वंद्व को रेखांकित करते हुए पूँजीपतियों के साजिशों को बताने की कोशिश की है। मुझे लगता है इस संग्रह को जरूरी साहित्य के रूप में यूनिवर्सिटी कॉलेजों में पढ़ाया जाना चाहिए। इसके अलावा इसके इस कार्यक्रम अनके वक्ताओं ने विस्तृत फल पर अपने -अपने विचार रखे।
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