कोरोना की मार पर अध्यात्मिकता का वार: नागा साधू आनंद गिरि कर रहे 105 दिन की कठोर साधना

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Corona kills spirituality: Naga Sadhu Anand Giri has been doing rigorous sadhana for 105 days
सरौरा में स्थित माता बड़ी भुय्यन देवी मंदिर परिसर में माता सेवक तपस्वी नागा साधू आनंद गिरि की 105 दिन की कठोर साधना चल रही है।

लखनऊ। आक्सीजन के लिए तड़पते लोगों की टूटती सांसे, कब्रिस्तानों-श्मशानों में शवों के ढेर, जीवनदायनी मां गंगा नदी में उफनाती लाशें.. यह भयावह प्रकोप उस महामारी का सभी ने देखा है, जिसने पूरे विश्व को दहला रखा है। साथ ही जीवन यापन की सारी प्रक्रियाएं इस कोरोना महामारी के कारण बुरी तरह प्रभावित हो चुकी हैं। ऐसे में तमाम प्रयास किए जा रहे है जिससे कि मानव जीवन पुन: पटरी पर लौट सके। लेकिन अभी तक यह प्रयास सफल होते नहीं दिख रहे हैं। ऐसे में विश्व कल्याण की भावना लिए साधू-संत इस भयावह प्रकोप के समाधान के लिए ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं।

इसी क्रम में देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के आईएमए रोड स्थित बड़ी भुय्यन देवी माता का मंदिर का परिसर तपस्वी-योगी नागा साधू आनंद गिरि महाराज के कठोर तप का साक्षी बना हुआ है। दरअसल यहां आईएमए रोड के सरौरा में स्थित माता बड़ी भुय्यन देवी मंदिर परिसर में माता सेवक तपस्वी नागा साधू आनंद गिरि की 105 दिन की कठोर साधना चल रही है। यह अनुष्ठान उन्होंने 30 मई से आरम्भ किया है, जो 11 सितम्बर तक चलेगा। अनुष्ठान के तहत हठ योग व जप योग के जरिए विश्व कल्याण के लिए की ईश्वर की उपासना की जा रही है। कोरोना को हराने तथा विश्व कल्याण निमित्त आरम्भ हुए इस अनुष्ठान को शुरू हुए एक माह से अधिक का समय बीत चुका है। इस दौरान कोरोना के कहर की रफ्तार थीमी पड़ने की भी खबरें सामने आ रही है।

नागा साधू 105 दिन भोजन से रहेंगे दूर

105 दिन के पूरे अनुष्ठान के दौरान तपस्वी नागा साधू आनंद गिरि अन्न ग्रहण नहीं करेंगे। भोजन से दूर रहकर वह सिर्फ पेय पदार्थ यानि मठ्ठे व अन्य पेय पदार्थ का ही सेवन कर रहे है, वो भी 24 घंटे में सिर्फ एक बार। यहां ग्रामीणों का कहना है कि बाबा ने मानव कल्याण को अपना जीवन समर्मित कर रखा है। इसी क्रम में कठोर तप के द्वारा अपने विश्व कल्याण के संकल्प को वह पूर्ण कर रहे हैं।

इन दो प्रकारों से चल रहा पूरा अनुष्ठान

इस पूरे अनुष्ठान के दो चरण हैं। पहला चरण जिसमें हठ योग के लिए सूर्य देव की उपासना की जा रही है। जिसके लिए यहां माटी का एक गोल टीला बनाया गया है। इसके चारों ओर गड्ढा बनाया गया है। साथ ही इसके चारों ओर उपलों के द्वारा अग्नि जलाई जाती है और तपस्वी नागा साधू आनंद गिरि इसके मध्य में बैठ सूर्य देव से प्रार्थना करते हैं। यह प्रक्रिया सूर्यदेव की बढ़ती तपिश के साथ तब तक चलती रहती है, जब तक कि सूर्य देव की तपिश अपने चरम से नीचे न उतरने लगे।

वहीं अनुष्ठान का दूसरा चरण जप योग का है। यह रात्रि के समय किया जा रहा है। यह रात्रि 2 बजे से आरम्भ होता है। इसमे माता सेवक तपस्वी नागा साधू आनंद गिरि मंत्र जप द्वारा ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं। नागा साधू आनंद गिरि बताते हैं कि उनका जीवन विश्व कल्याण के लिए समर्पित है। यहां सनातन धर्म की स्थापना ही उनके इस लौकिक जीवन का मुख्य उद्देश्य है।

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